कल्पतरु - ज्ञान की छाया - 3

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तुमसे मिलना अच्छा लगता है (कविता)"समय पल भर को अब भी रुकता है,तुमसे मिलना अच्छा लगता है, सच है कि अब तक वर्षों बीते, चलते फिरते हारे जीते, दूर बहुत हो यह सच है, फिर भी मन हर पल कहता है, तुमसे मिलना अच्छा लगता है, तब ताने बाने जीवन के सपने, सब बातें सिर्फ पढ़ाई थी, आती जाती कई परीक्षा, वह भी जटिल लड़ाई थी, मान मर्यादा का पालन, लक्ष्य बना कर जीना था,  चाह यही थी कुछ बन जाऊँ, कुछ बन कर ही तुमको पाना था, जब तुम मिली कई वर्षो बाद, पहले से हो मोटी और बहुत कुछ बदला है तुम दो बच्चों की अम्मा हो ,और " ईशू " एक निकम्मा हैं ,समय