नफ़रत-ए-इश्क - 48

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अर्ज किया है.....बंदिशों से घिरा है ये इश्क मेरा....तुझे चाहना भी है.... और उस चाहत को खुद से छुपाना भी है .....तेरे लिए तड़पना भी है..... और तेरे ही बाहों में इस तड़प की इंतहा भी है ........नाराजगी भी तुझी से है...... और शिकायत भी तुझसे ही करनी है .....दर्द भी तुझसे है और इस दर्द की दवा भी तेरे अघोष मिलना है।विराट अपने ही शायराना अंदाज में गहराई से सरघोधी करते हुए ही तपस्या को पीछे से बाहों में भर लिया। तपस्या जो इस बख्त अपने कमरे के बालकनी में अंधेरे में खामोश खड़ी थी अचानक विराट की आवाज