पीड़ा में आनंद - भाग 2 - सिपाही

  • 495
  • 228

  सिपाहीजगतपाल बहुत उद्विग्न था। आज उसने ठीक से खाया भी नहीं था। वह अपनी खाट पर लेटा अपने खयालों में डूबा था।कैसा समाज है ? बदलाव से इतना डरता है। क्या हर बदलाव बुरा है ? इतने सालों के इतिहास में ना जाने कितना कुछ बदला है। बदलाव तो प्रकृति का नियम है। पर जब भी समाज की व्यवस्था में कुछ बदला है तो पहले समाज में विरोध ज़रूर होता है।समाज इस मामले में अजगर की तरह होता है। जिस करवट लेट गया उसे ही सही मानता है। फिर कोई ज़रा भी इधर उधर करने का प्रयास करे तो