इस अध्याय में बाबा ने गीता के एक श्लोक का अर्थ समझाया है। कुछ लोगों की ऐसी धारणा थी कि बाबा को संस्कृत भाषा का ज्ञान न था और नानासाहेब की भी उनके प्रति ऐसी ही धारणा थी। इसका खंडन हेमाडपंत ने मूल मराठी ग्रंथ के ५० वे अध्याय में किया है। दोनों अध्यायों का विषय एक सा होने के कारण वे यहाँ सम्मिलित रूप में दिए जाते हैं।प्रस्तावनाशिरडी के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है? श्री द्वारकामाई भी धन्य है, जहाँ श्री साई ने आकर निवास किया और वहीं समाधिस्थ हुए।शिरडी के नर-नारी भी धन्य हैं, जिन्हें साई