उदि की महिमा (भाग-1)पूर्व अध्याय में गुरु की महानता का दिग्दर्शन कराया गया है। अब इस अध्याय में उदी के माहात्म्य का वर्णन किया जाएगा।प्रस्तावनाआओ, पहले हम सन्तों के चरणों में प्रणाम करें, जिनकी कृपादृष्टि मात्र से ही समस्त पापसमूह भस्म होकर हमारे आचरण के दोष नष्ट हो जाएँगे। उनसे वार्तालाप करना हमारे लिये शिक्षाप्रद और अति आनंददायक है। वे अपने मन में “यह मेरा और वह तुम्हारा” ऐसा कोई भेद नहीं रखते । इस प्रकार के भेदभाव की कल्पना उनके हृदय में कभी भी उत्पन्न नहीं होती। उनका ऋण इस जन्म में तो क्या, अनेक जन्मों में भी न