इस अध्याय में हेमाडपंत ने दो विषयों का वर्णन किया है।(१) किस प्रकार बाबा की अपने गुरु से भेंट हुई और उनके द्वारा ईश्वरदर्शन की प्राप्ति कैसे हुई। (२) श्रीमती गोखले, जो तीन दिन से उपवास कर रही थीं, को पूरनपोली का भोजन कैसे कराया।प्रस्तावनाश्री हेमाडपंत वटवृक्ष का उदाहरण देकर इस गोचर संसार के स्वरूप का वर्णन करते हैं। गीता के अनुसार वटवृक्ष की जड़ें ऊपर और शाखाएँ नीचे को चारों ओर फैली हुई हैं। “उर्ध्वमूलमधःशाखम्” (गीता पंद्रहवाँ अध्याय, श्लोक १)। इस वृक्ष के गुण, पोषक और अंकुर, इंद्रियों के भोग्य पदार्थ हैं । जड़ें जिनका कारणीभूत कर्म हैं, वे सृष्टि