इस अध्याय में बतलाया गया है कि तीन अन्य भक्त किस प्रकार शिरडी की ओर खींचे गए।प्राक्कथनजो बिना किसी कारण भक्तों पर स्नेह करने वाले दया के सागर हैं तथा निर्गुण होकर भी भक्तों के प्रेमवश ही जिन्होंने स्वेच्छापूर्वक मानव शरीर धारण किया, जो ऐसे भक्त-वत्सल हैं कि जिनके दर्शन मात्र से ही भवसागर के भय और समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं, ऐसे श्री साईनाथ महाराज को हम नमन करें। भक्तों को आत्मदर्शन कराना ही सन्तों का प्रधान कार्य है। श्री साई, जो सन्त शिरोमणि हैं, उनका तो मुख्य ध्येय ही यही है । जो उनके श्रीचरणों की शरण