प्राक्कथनजो अकारण ही सभी पर दया करते हैं तथा समस्त प्राणियों के जीवन व आश्रयदाता हैं, जो परब्रह्म के पूर्ण अवतार हैं, ऐसे अहेतुक दयासिन्धु और महान् योगिराज के चरणों में साष्टांग प्रणाम कर अब हम यह अध्याय आरम्भ करते हैं।श्री साई की जय हो! वे सन्त चूड़ामणि, समस्त शुभ कार्यों के उद्गम स्थान और हमारे आत्माराम तथा भक्तों के आश्रयदाता हैं। हम उन साईनाथ की चरण-वन्दना करते हैं, जिन्होंने अपने जीवन का अन्तिम ध्येय प्राप्त कर लिया है।श्री साईबाबा अनिर्वचनीय प्रेमस्वरूप हैं। हमें तो केवल उनके चरणकमलों में दृढ़ भक्ति ही रखनी चाहिए। जब भक्त का विश्वास दृढ़ और