संत श्री साईं बाबा - अध्याय 23

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प्रस्तावनावस्तुतः मनुष्य त्रिगुणमय (तीन गुण अर्थात् सत्व-रज-तम) है तथा माया के प्रभाव से ही उसे भासित होने लगता है कि मैं शरीर हूँ। दैहिक बुद्धि के आवरण के कारण ही वह ऐसी धारणा बना लेता है कि मैं ही कर्त्ता और उपभोग करने वाला हूँ और इस प्रकार वह अपने को अनेक कष्टों में स्वयं फँसा लेता है। फिर उसे उससे छुटकारे का कोई मार्ग नहीं सूझता । मुक्ति का एकमात्र उपाय है — गुरु के श्री चरणों में अटल प्रेम और भक्ति। सबसे महान् अभिनयकर्ता भगवान् साई ने भक्तों को पूर्ण आनन्द पहुँचाकर उन्हें निज-स्वरूप में परिवर्त्तित कर लिया