इस अध्याय में बाबा किस प्रकार भक्तों से भेंट करते और कैसा बर्ताव करते थे, इसका वर्णन किया गया है।सन्तों का कार्यहम देख चुके हैं कि ईश्वरीय अवतार का ध्येय साधुजनों का परित्राण और दुष्टों का संहार करना है । परन्तु संतों का कार्य तो सर्वथा भिन्न ही है । सन्तों के लिए साधु और दुष्ट प्रायः एक समान ही हैं। यथार्थ में उन्हें दुष्कर्म करने वालों की प्रथम चिन्ता होती है और वे उन्हें उचित पथ पर लगा देते हैं। वे भवसागर के कष्टों को सोखने के लिए अगस्त्य के सदृश हैं और अज्ञान तथा अंधकार का नाश करने