संतों का अवतार कार्यभगवद्गीता (चौथा अध्याय ७-८) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि “जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार धारण करता हूँ। धर्म-स्थापन, दुष्टों का विनाश तथा साधुजनों के परित्राण के लिये मैं युग-युग में जन्म लेता हूँ।” साधु और संत भगवान के प्रतिनिधिस्वरूप हैं। वे उपयुक्त समय पर प्रगट होकर अपनी कार्यप्रणाली द्वारा अपना अवतार-कार्य पूर्ण करते हैं। अर्थात् जब ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं, जब शूद्र उच्च जातियों के अधिकार छीनने लगते हैं, जब धर्म के आचार्यों का अनादर तथा निंदा होने लगती है,