श्रीहंस-अवतारकी कथा— एक बार सनकादिक परमर्षियों ने अपने पिता श्रीब्रह्माजी से पूछा-पिताजी ! चित्त गुणों अर्थात् विषयों में घुसा ही रहता है और गुण भी चित्त की एक-एक वृत्ति में प्रविष्ट रहते ही हैं अर्थात् चित्त और गुण आपस में मिले-जुले ही रहते हैं। ऐसी स्थितिमें जो पुरुष इस संसार सागर से पार होकर मुक्तिपद प्राप्त करना चाहता है, वह इन दोनों को एक-दूसरे से कैसे अलग कर सकता है? यद्यपि श्रीब्रह्माजी देवशिरोमणि, स्वयम्भू और सब प्राणियों के जन्मदाता हैं तो भी कर्म-प्रवण बुद्धि होने से इस प्रश्न का समुचित समाधान न कर सके। अतः इस प्रश्न का उत्तर देनेके