दिन भर गुज़र गया। बेला के नाखूनों से खून टपक टपक कर जो फर्श पर गिरा वह खून और नाखूनों से निकलने वाले खून अब जम गए थे इस तरह खून बहना बंद हो गया था। उसे न एक बूंद पानी दिया गया न खाना। कुर्सी पर बैठे बैठे वह निढाल होकर सो गई थी। सूरज ढलने को जा रहा था। परिंदे शोर मचाते हुए अपने अपने घरों में जाने की जल्दी में थे। बेला के सामने टॉर्चर करने वाले वोही दो एजेंट आए और एक गिलास पानी उसके मुंह पर छपाक से फेंका। वह बड़ी बड़ी सांसे लेते हुए उठ