स्याही के आँसू - अनकहे लफ्ज़ों की दास्तान - भाग 1

स्याही के आँसू – अनकहे लफ्ज़ों की दास्तान(भाग 1 – स्याह लफ्ज़ और एक अनजान आवाज़)"स्याही से लिखे लफ्ज़ कभी मिटते नहीं,बस वक्त की धुंध में खो जाते हैं..."रात का तीसरा पहर था। घड़ी की टिक-टिक कमरे की नीरवता में गूंज रही थी, मानो समय भी अपनी गति से थककर ठहर गया हो। खिड़की के बाहर दूर कहीं एक आवारा कुत्ता भौंक रहा था, लेकिन बाकी सबकुछ सन्नाटे में डूबा था।कमरे में सिर्फ़ लैपटॉप की हल्की नीली रोशनी थी, जो अंधेरे दीवारों पर अजीब-सी परछाइयाँ बना रही थी। यह परछाइयाँ स्थिर नहीं थीं, वे जैसे हल्के-हल्के हिल रही थीं। या