जा, डिप्टी बनेगा -देवेन्द्र कुमार उर्दू के किसी शायर ने क्या खूब लिखा है, “भड़कती है लौ जब दिया बुझने को होता है|” जैसे जैसे बुजुर्गी आती है, जिंदगी का तेल कम होता जाता है और जिंदगी की शाम गहराती जाती है, पता नहीं कहाँ कहाँ की पुरानी से पुरानी ुरानीँ कि बातें याद आती हैं,ैं बातें याद आती रहती हैं| अब जब बहुत नई बात तो याद नहीं रहती, जैसे पांच मिनट पहले ही चश्मा कहाँ रखा था? जो ढूंढ़ने पर मुश्किल से ही मिल पाता है, या सुबह को क्या खाना खाया था? या आज की