ग़ज़ल खण्ड 1 हाशिये पर जो यहाँ औंधे पड़े हैं। घर उन्हीं के बारहा क्योंकर जले हैं?हर किसी की ज़िन्दगी उत्सव न होती,दर्द अपना पी तुम्हें लगते भले हैं।चित्र छोड़े आँसुओं ने गाल पर जो, अर्थ उनके खोज लेना पट खुले हैं।झाड़ियाँ मग में कँटीली, तमस गहरा और राहें छेंकते विषधर डटे हैं।सेज फूलों की मयस्सर कब उन्हें जो रास्ते ही खोजते आगे बढ़े हैं।2कभी यूँ ही चुप रहने को मन करे। दुखों को चुप-चुप सहने को मन करे।भँवर में कश्ती है यह जानता हूँ, भँवर से किन्तु निकलने को मन करे।कपोलों पर बैठे रक्त