यह मैं कर लूँगी - भाग 1

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(धारावाहिक कहानी) (भाग 1) पत्रिकाएं पोस्ट करने के लिए कईएक डाकघर के चक्कर लगाने पड़ते। क्योंकि लिफाफे अधिक होते और एक खिड़की पर पांच-सात से अधिक लिए नहीं जाते। खुश तो इसलिए हो गया कि आखिर एक काउंटर ऐसा भी मिल गया जहां भीड़ भी नहीं होती और वहां पर बैठने वाली बुकिंग क्लर्क मुस्कुराकर स्वागत भी करती। अगर मैं ज्यादा पत्रिकाएं उसे डिस्पैच के लिए दे देता तो कभी लौटाती नहीं, रख लेती। बोलती, 'कल आकर रसीद ले लीजिए।' इस तरह एक सिलसिला बन गया और मैं किसी दूसरी जगह चक्कर न लगाकर वहीं जाने लगा। और पहले 10