जिंदगी के पन्ने - 9

रागिनी के परदादी को गुज़रे कुछ महीने ही हुए थे कि उसके छोटे से शहर में हर साल की तरह मेला लगा। शहर में इस मेले की अपनी एक अलग ही धूम थी—रंग-बिरंगी रौशनियाँ, ऊँचे झूले, मीठे-खट्टे गोलगप्पे, खिलौनों की दुकाने, और तरह-तरह की मिठाइयों की महक पूरे शहर में फैली हुई थी। पाँच दिनों तक चलने वाले इस मेले में रागिनी के पापा उसे हर दिन लेकर गए।"पापा, वो देखो! कितने बड़े-बड़े झूले!" रागिनी ने चहकते हुए कहा।उसके पापा मुस्कुराए और बोले, "तो फिर चलो, आज तुम्हें इन झूलों पर बैठाकर आसमान की सैर कराते हैं।"रागिनी ख़ुशी से उछल