कारवाॅं - 10(3)

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वंशीधर का दिमाग़ घूम फिरकर हठीपुरवा पर ही अँटक जाता है। वही नन्दू, हरवंश, तन्नी, ओर अंजलीधर का चेहरा बार बार सामने आ जाता है। वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं यह मलाल उन्हें अन्दर ही अन्दर सालता रहता है।..... पर वह करेगा कुछ ऐसा जिसे लोग भूल नहीं पाएँगे। वंशीधर होने का कोई अर्थ है.... समझ लो इसे.... एक गहरा अर्थ....।पुराने प्रधान जी और चौधरी प्रसाद दोनों बहुत दुखी हैं। इस बार दोनों प्रधानी में पटखनी खा गए। यही दुःख नहीं है दुःख यह भी है कि तन्नी और उसके सहयोगी जिस तरह काम कर रहे हैं उससे