कारवाॅं - 10(2)

वंशीधर का दिमाग उलझता जा रहा है। मानवाधिकार आयोग और हठीपुरवा उन्हें परेशान कर रहा है। निरंजन प्रसाद भी उसी वाद में दंडित हुए हैं पर वे हाथ पाँव कम चला रहे हैं। सोचते हैं वंशीधर करेंगे ही। इसीलिए उनकी दस बात सह भी लेते हैं।रात के ग्यारह बज गए हैं पर वंशीधर को नींद नहीं आ रही है। वे उठते हैं, थोड़ी देर बुदबुदाते हैं, फिर लेट जाते हैं पर नींद का कहीं पता नहीं। भुने काजू हाथ में लेकर एक एक टुकड़ा मुँह में डालते हैं, कुटकुटाते हैं। प्रतिहिंसा की अग्नि धीरे धीरे प्रज्ज्वलित हो उठती है। हठी