कारवाॅं - 10(1)

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अनुच्छेद-दसप्रधान जी करुना और रामकरन के साथ अपने दरवाज़े पर अलाव पर चर्चा कर रहे थे। रात के ग्यारह बजे थे।'मालिक, कोई जुगाड़ करो जिससे चौधरी प्रसाद बैठि जायँ। फिर तो आप और तन्नी की सीधी लड़ाई और जीत पक्की।' 'हूँ' प्रधान जी के मुख से निकला । रामकरन कुछ क्षण प्रधान जी का चेहरा देखते रहे फिर बोल पड़े आज पछियाव झारि कै चला है। ठंड कुछ बढ़ि गै है।'मैं समझ गया रामकरन..... तलब लगी है न?' प्रधान जी के इतना कहते ही करुना भी चहक उठे मालिक आप अन्तर्जामी हौ। मालिक ऐसै चाही।'प्रधान जी उठे, ललकी एक बोतल