पीहर

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माँ से मायका .... पिता से पीहर, और भी न जाने कितने ही नाम हैं – बाबुल के आँगन के वह आँगन जहाँ वह चिड़िया – सी चहकती है और एक दिन अपने पिया का आँगन महकाने के लिए उसी आँगन को छोड़कर चली जाती है जो आँगन कभी उसकी किलकारियों से गूँजा करता था, कभी उसकी नटखट – सी शरारतों से मुस्कुराया करता था, कभी उसकी अल्हड़ – सी अठखेलियों से खिल जाया करता था, कभी उसकी मासूमियत से भर जाया करता था, आज वही आँगन उसे पराया लगने लगा है माँ और पिता से ही