द्वारावती - 88 (अंतिम भाग)

88उत्सव तथा केशव व्याकुल थे, चिंतित थे, दुविधा में थे। गुल शांत, स्थिर तथा निर्लेप थी। सूरज की प्रथम रश्मि ने अवनी को स्पर्श किया। दूसरी ने समुद्र को, तीसरी ने गुल को, चौथी ने केशव को , पाँचवीं ने उत्सव को स्पर्श किया। छठी ने तट को स्पर्श किया। धरती पर चेतना का संचार होने लगा। गुल ने आँखें खोली, “केशव, तुम बांसुरी बजाओ।”“मेरे पास बांसुरी नहीं है, गुल।”“जाओ, मेरे कक्ष में एक बांसुरी है जो तुमने मुझे दो थी। स्मरण है ना तुम्हें?”केशव बांसुरी लेने चला गया।“मेरे लिए क्या आज्ञा है, गुल?”“तुम नर्तन करो, उत्सव।”“कैसा नर्तन, गुल?”“जैसा कृष्ण ने गोपियों