मेरी रंग-बिरंगी होलीगाँव में होली की तैयारियाँ जोरों पर थीं। हर गली में गुलाल की सुगंध, मिठाइयों की खुशबू और ढोल-नगाड़ों की गूंज थी। मैं, राघव, हर साल की तरह इस बार भी अपने दोस्तों के साथ खूब होली खेलने के लिए उत्साहित था।सुबह होते ही हम रंग, पिचकारी और गुब्बारों के साथ बाहर आ गए। जैसे ही मैंने पहला गुलाल उड़ाया, हवा में रंगों की बौछार हो गई। दोस्त हँसी-ठिठोली कर रहे थे, बच्चे दौड़-दौड़कर एक-दूसरे को रंग रहे थे, और बड़े-बुजुर्ग प्यार से गले मिल रहे थे। लेकिन मेरी नज़र मोहल्ले के कोने में खड़ी छोटी सी लड़की,