शंकरन सर की जिजीविषा - देवेन्द्र कुमार शंकरन सर को मैं पिछले लगभग अठारह वर्ष से जानता हूँ, या यह कहें जब से वे दिल्ली की द्वारका की हमारी ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी में एक फ्लैट खरीद कर रहने आये थे| शुरू शुरू में उनका स्वभाव, तौर तरीका,रहन-सहन बहुत ही अजीब सा लगता था, दुबले पतले से, औसत कद के मगर तेजतर्रार, हर चीज़ पर उनकी पैनी नज़र रहती थी, जैसे बाकी सब पहले से रहने वालों पर कुछ शक कर रहे हों, हर बात को जैसे परख रहे हों,सब लोगों की जांच-पड़ताल कर रहे हों। उनके सोसाइटी में आने पर