सन्यासी -- भाग - 32

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तब जोगी बने जयन्त की बात सुनकर चन्द्रविजय बोला...."ये सब क्या कह रहे हो तुम,मुझे इसकी कोई पीठ नहीं देखनी,जाओ और अभी से काम पर लग जाओ""जी! मालिक!"जयन्त बोला...फिर दोनों अपनी जगह से उठने लगे तो चन्द्रविजय दोनों से बोला..."तुम्हारा ये दोस्त बिरजू गूँगा है क्या?,जब से देख रहा हूँ कि बस तुम ही तुम बोले जा रहे हो","अब का बताई मालिक! पहले ई हमार दोस्त बिरजू बहुतई हँसमुख और बातूनी रहा है,लेकिन जब से इसकी मेहरिया आई है तो तब से उसने इसका जीना दूभर कर रखा है,बेचारा रोज खून के आँसू रोता है,ऐसी चण्डालिनी मेहरिया है इसकी कि