रात्रि के प्रथम प्रहर में द्वार खुलने की आवाज सुनाई दी. तत्काल ही नूपुरो की ध्वनी एवं मृदुल नारी कंठो की आवाज मुखर होने लगी. माता के मंदिर में राजकुमारी लीलावती प्रवेश कर चुकी थी. संगमंरमर के एक धवल पाषाण खंड पर राजकुमारी लीलावती ने अपनी कंचुकी उतार कर रखी तो प्रजवलित दीपों की आभा फीकी पड़ गयी. ऐसा लग रहा था मानो नील गगन में चंन्द्रोदय होते ही तारों की आभा मंद हो गयी हो. एक दासी ने चामुंडी माता की वेदिका पर रखे दीप को छोड़कर सारे दीप बुझा दिये, किन्तु प्रकाश से देवालय जगमगा रहा था. कंचुकी