एक दृष्टि,, अनेक प्रश्न?

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' हम कितना आत्म संवाद करते है ? हम क्या आत्म संवाद करते है? और हम कितना आत्मसंवाद सिर्फ खुद की आत्मा को संतुष्ट करने के लिए करते है?'आज की पीढ़ी क्या भूल रही वास्तविक आत्मसंवाद करना क्यों?या अब विचार की नई धारा आ गई जिसे कहते, overthinking,,आप अपने मन को किस प्रकार दूषित कर रहे, छिछला मनोरंजन देख के? या उन लोगों से घंटों बात करके जिनका लक्ष्य समाज में विध्वंश फैलाना हो?हर उस बुरे विचार को त्याग दो , जो तुम्हें वास्तविक आत्मसंवादसे दूर कर रहा हो किन्तु कौनसे विचार बुरे और अच्छे हैं इसको किस कसौटी