भगवान परशुराम अवतार का सत्यार्थ

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सनातन अवतार आस्था एव दर्शन-सनातन में अवतारों कि अवधारणा युग सृष्टि कि दृष्टि दृष्टिकोण के निर्धारण के लिए निश्चित उद्देश्यों के परिपेक्ष्य ही उद्धृत है ।ब्रह्मांड का नियंता परब्रह्म स्वंय सृष्टि के कल्याणार्थ जन्म जीवन की श्रेष्ठतम काया मानवीय स्वरूप में आता है और उद्देश्य के अनुसार निश्चित मानदंडों कि स्थापना के बाद पुनः अपने मूल अस्तित्व में समाहित हो जाता है ।सनातन में अवतारों की इसी अवधारणा के अंतर्गत प्रथम अवतार मत्स्य के रूप मे सृष्टि कि संरचना संवर्धन के लिए वर्णित है तो दूसरा कच्छप अवतार नकारात्मक  एव सकारात्मक शक्तियों के समन्वय को परिभाषित करने के लिए जो सागर