( बीते न रैना ) उपन्यास की छेवी किश्त चल रही है, कितना सकून था, पहले जो समय थे, शहर तब भी सोता नहीं था, आज तो बिलकुल नहीं सोता है... पैसे के लेन देन ने बस आदमी की मत मार डाली है, हर किसी को बस पैसा चाहिए... वो भी बिना मेहनत का। फिरोज के चेहरे पर सलवटे उबर आयी। आखिर चाहते कया थे, जिनकी वो गिरफ्त मे था। आज वो कहा