यू तो सुधा की नींद सुबह 5 बजे ही खुल गई थी,लेकिन शरीर मे ना तो कोई स्फूर्ति,ना कोई उमंग....कहाँ तो कभी कभी 5 घंटे की नींद भी बहुत लगती थी...अनिकेत चाय का कप पकड़ते ही बोलउठते “क्या सुधा ... इतने जल्दी क्यो उठ जाती हो...पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है..कुछ देर से उठोगीतो क्या बिगड़ जाएगा"“मुझे जल्दी उठ कर आपको चाय देना .... पूजा करना और उगते सूरज को देखना बहुत पसंद है ..मुझे इतनी नींद पर्याप्त लगती है” वो चादर तय करती हुई बोलती तो कभी बिस्तर ठीक करते हुए ..."मुझे भी लत लगी हो जैसे तुम्हारे हाथ