नज़र आती नहीं मंजिल

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नज़र आती नही मंजिलकहानी/Sharovan ***ज़िन्दगी के इक्कीस वर्षों तक रूमी की मृत्यु के साथ-साथ अपनी अजन्मी सन्तान के भी काल के गर्त में समा जाने का दर्द झेलते हुए राज बाबू जिन यातनाओं के दौर से गुज़रते हुए अपनी उम्र के दिन पूरे कर रहे थे, उन्हीं के मध्य जब उन्होंने एक दिन अचानक से महुआ को देखा तो वे उसे देखते ही चौंक क्यों गए? प्रेम के विश्वास के धरातल पर वफाई के सौदों पर भी डंडी मारती हुई एक इंसान की वह दुखभरी कहानी कि जिसने सदा चुपचाप अपने आंसुओं को पिया, मगर किसी पर बे-मुरब्ब्ती का कलंक न