85“सब व्यर्थ। प्रकृति पर मानव का यह कैसा आक्रमण? हम उसे उसकी नैसर्गिक अवस्था में भी नहीं रहने देते हैं। ऐसा करने का अधिकार हमें किसने दिया?” केशव बोले जा रहा था। उत्सव ने उसे रोका, “कुछ कहोगे कि क्या हुआ? यूँ ही बोले जा रहे हो।”“प्रशासन अंधा, बहेरा होता है ऐसा सुना था। किंतु असंवेदनशील भी होता है यह देख लिया।”“अर्थात् वह समुद्र की मुक्ति हेतु सम्मत नहीं हैं। यही ना, केशव?” “हाँ, गुल। हाँ, उत्सव। समुद्र की निर्बाधता को बांध दिया है और उसके लिए उनके पास असंख्य कारण है।”“असंख्य? इन कारणों में कोई तथ्य, कोई तर्क भी है क्या?” “तर्क?”