84तीनों चलने लगे। चाँदनी मार्ग प्रशस्त करती रही। केशव सब को संगम घाट पर लेकर आया। स्मशान के समीप वह रुक गया। “आप दोनों यहीं रुको, मैं अभी आता हूँ।”कुछ अंतर केशव अकेला चला। पश्चात वह रुक गया। उसने जो देखा उसने उसे अचंभित कर दिया। “ओह … हो …।”स्मशान की इस नीरव रात्रि में इन शब्दों को सुनकर गुल एवं उत्सव दौड़कर केशव के समीप आ गए। “क्या हुआ, केशव?”“इस तट को देखो। यहाँ पर पड़े इन पत्थरों को देखो। यह पत्थर यहाँ कब लगे?” केशव ने प्रश्न किया। उत्तर नहीं मिला। वह आगे बोला, “मैं जब इस तट को छोड़कर गया