78समीर की एक तरंग उत्सव को स्पर्श कर चली गई। उस स्पर्श में उत्सव ने कुछ अनुभव किया। वह उस अनुभव को समझे उससे पूर्व दूसरी तरंग आकर स्पर्श कर चली गई। उस तरंग ने भी वही अनुभव करवाया। एक एक कर तरंगें आती रही, उत्सव को स्पर्श कर चली जाती रही। प्रत्येक स्पर्श में कुछ अनूठा था जो उत्सव ने इससे पूर्व कभी अनुभव नहीं किया था।उत्सव उस अनुभूति को समझ नहीं पाया। उसने पढ़े सभी ग्रंथों का ज्ञान भी उस अनुभव को समझाने में विफल रहा। उसने प्रयास त्याग दिए, बस अनुभव करता रहा। उस अनुभव के आदी होने