दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्षा ड्यूटी का दूसरा दिन था। ठंडी सुबह हल्की धूप में कॉलेज के गलियारों में चहल-पहल थी। हिंदी कथा का पेपर था, और मुझे उम्मीद थी कि बच्चे इस विषय में रुचि दिखाएंगे। मैंने सोचा, शायद आज के पेपर में बच्चे पूरा समय देकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। लेकिन जैसे ही परीक्षा शुरू हुई, कल जैसा ही माहौल देखने को मिला।कुछ छात्र अपनी मर्जी से सीटें चुन रहे थे। कुछ देर से आए और हंसते हुए बैठ गए। ऐसा लग रहा था जैसे यह परीक्षा उनके लिए कोई गंभीर अवसर नहीं, बल्कि