मेरी नींद नए आए यात्रियों ने तोड़ी। “देखो तो यह सवारी कैसे मुंह ढांप कर सो रही है।” “जब कि अभी शाम के आठ ही तो बजे हैं।” दोनों पुरुष स्वर थे। निष्ठुर और कर्ण कटु। “वह मेरे साथ है,” मुझे बाबूजी की आवाज़ साफ़ सुनाई दी। बाबूजी? बाबूजी? चौंक कर गाड़ी से मिला कंबल मैं ने अपने चेहरे से हटा लिया । हां,सामने बाबू जी ही थे। हल्के भूरे रंग की ज़मीन पर काले रंग के महीन चार खानों वाले उसी कोट में जो हम दोनों ने एक साथ चुना था । मां की मृत्यु के पश्चात अपने कपड़ों