मुक्त -----उपन्यास की दूसरी किश्त.... (2) सोचने से अगर कुछ हो जाए, तो हो जाना चाइये। नहीं होता, वही है जो खुदा का निर्धार्त किया हुआ होता है। कहानी चलती है.... रंग बिरंगे पतग हवा मे उड़ रहे है... आसमान मे कोई टावा बादल है.. जो गहरा जरूर है... बरस जाने को.. धुप साफ निकली हुई, शहर और गांव की ईमारतो को लिश्का रही थी। कितना भावक किस्म का चित्र बन रहा था। पहाड़ी छेत्र था, हरयाली थी। उबड़