प्रबोध

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  सन उन्नीस सौ पचास का वह दशक साल दर साल नया पन लाता रहा था। हमारी कस्बापुर रोड पर यदि किसी साल बर्फ़ का नया कारखाना खुला तो दूसरे साल कपास से धागा बनाने का। और यदि तीसरे साल बिस्कुट बनवाने की भट्ठी खुली तो चौथे साल दवा की नई दुकान। जिस समय मै चार साल की थी और भाई सात का,उस सन इक्यावन में बाबा ने घाटे पर चल रहा अपने लोहे का कारखाना बेच कर रेडियो की दुकान खोली थी जहां वह अपने जोड़े हुए रेडियो तैयार भी करते और बेचते भी। “आज कौन गाहक आए? “ और