"में जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हु छोड़ के घर। ये क्या की घर की उदासी भी साथ हो गई "वो नन्हा सा बचपन जो खुद अपने मम्मी - पापा के झगड़ों में खोजता है वो एक अकेले कमरे में बैठकर रोता है वो सोचता है कोई तो चुप करने आयेगा मेरे मन मैं उठ इस तूफान को पर वह अकेला सा बचपन खुद को ढूंढ रहा है किसी और के आंगन में क्यों उसका घर आंगन इतना छोटा पड़ गया उसकी सोच इतनी गहरी कैसे एक रुपएक टॉफी खाने के उम्र