मंजिले - भाग 9

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   ------खैर हो ----              चलती का नाम गाड़ी है। बेशर्म लोग कुछ नहीं समझ सकते। बस कही भी पैसे बचते है, छोड़ते नहीं है, भोजन फ्री का....चावल इतना खा गए, उस वक़्त, कि पूछो मत। चलना दुर्लभ हो गया। कड़ी चावल कही भी दिख जाए, जम कर खाये। शुदाई हो जाते है, कया करे। भंडारा चले तो खाना तो बने ही... हम जैसे नहीं खाये, तो फिर कौन खाये  ---बस यही सोच के हम खा लेते है। भंडारा जो होये, हम लोगों के लिए विशेष होता है। कया समझें हो, हम कुलीन ब्राह्मण है..