आखेट महल - 10

  • 858
  • 273

दस ''खोल.. खोल.. खोलता है कि नहीं मुँह..।'' सिपाही जोर-से चीखा। और एक भरपूर तमाचा फिर उसके मुँह पर मारा। गौरांबर उसी तरह खड़ा रहा। सिपाही होश खो बैठा। जोर से तीन-चार घूँसे उसके पेट में मारे। गौरांबर लड़खड़ा कर दीवार से सट गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। सिर के पिछले हिस्से में जोर से चोट लगने से खून बहने लगा, जिससे उसके बाल चिपक-से गये। गौरांबर ने सिर के पीछे हाथ लगाकर दबाया तो दो अँगुलियाँ खून से सन गयीं। गौरांबर की आँखें भय से फैल गयीं। वह धीरे-धीरे दीवार के सहारे ही फिसलता-सा वापस बैठ गया।