संवाद

  • 378
  • 135

(नैतिकता अनैतिकता के प्रश्नों को रेखांकित करती पौराणिक प्रसंग पर आधारित काल्पनिक कथा)मैं सुहागसेज पर घूँघट निकालकर बैठी पति के आने का इन तजार कर रही थी।प्रथम मिलन की रात्रि मन मे उत्सुकता, कौतूहल था।न जाने क्या होगा?वह कैसा व्यवहार करेगा।स्वभाव कैसा है, उसका।एक तरफ मन मे अनेक प्रश्न उठ रहे थे।दूसरी तरफ मन पिया से प्रथम मिलन के लिए बेचैन था।ज्यो ज्यो रात सरक रही थी।अधीरता बढ़ती जा रही थी।और बेचैनी भी।क्या प्रथम मिलन की रात्रि को ही कोई अपनी प्रियतमा को इतना तड़पाता हैं।आखिर इन तजार की घड़ियां खत्म हुई और उसने सुहाग कक्ष में प्रवेश किया था।उसके