एक महान व्यक्तित्व - 4

  • 678
  • 228

की हमारी हॉस्टल की सबसे खास बात मुझे यहाँ की प्राथना सभा लगी। हमारे जिवन मे जब हम बालक अवस्था मे होते है तो सबसे जरूरी ये है की हमारे अंदर से संस्कार की पूर्ति हो जो केवल और केवल भक्ति, पार्थना और भगवान् का भजन कीर्तन करने से आती है। असल मे हमारा शरीर और आत्मा अलग अलग है हमारे पंच तत्वों से बने बाह्य शरीर को तो हम भोजन दे कर उसका विकास कर लेते है लेकिन हमारी आत्मा का विकास करने के लिये पार्थना रूपी भोजन की जरूरत पडती ही है इस लिये तो " प्राथना को