73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच गया। चारों दिशाओं में घना जंगल था। तीन दिन तक उस जंगल में वह भटकता रहा। उसे कोई दिशा नहीं सुझ रही थी। वह जंगल, जैसे अखंड जंगल हो। कहीं कोई छौर नहीं दिख रहा था। तीसरे दिन सांध्य समय जंगल के मार्ग से जाती हुई साधुओं की एक टोली उत्सव ने देखी। किसी मनुष्य को देखकर वह अल्प मात्रा में भय से मुक्त हुआ। वह उन साधुओं के पीछे पीछे चलता रहा। रात्रि होने पर साधुओं ने एक स्थान पर विश्राम किया। उत्सव उनके सामने प्रकट हो गया,