और मैं साहित्यकार बन गया

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  और मैं साहित्यकार बन गया (एक सच्ची कहानी)   मुझे जीवन में कुछ नया करने, पढ़ने व लिखने का शौक बचपन से ही रहा है। दसवीं-ग्यारहवीं कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते समय कुछ लेखन का कार्य किया, परन्तु पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उसे आगे नहीं बढ़ा पाया। सरकारी सेवा में आया तो काम के बोझ और पारिवारिक जिम्मेदारियों से निकलने का समय ही नहीं मिला। यह दीगर बात है कि सरकारी सेवा में रहते हुए मैं कुछ ऐसे पदों पर नियुक्त रहा जहाँ पर लेखन का कार्य मुझे सौंपे गए कार्यों का एक हिस्सा था। परन्तु लेखन के माध्यम