उजाले की ओर –संस्मरण

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प्रिय मित्रो! स्नेहिल नमस्कार आशा है सब स्वस्थ वआनंदित हैं और आने वाले त्योहारों की तैयारियों में पूरे जोशो-खरोश से लगे हुए हैं। हमारे देश जैसा दुनिया भर में कौनसा देश है जो इतना रंग बिरंगा है। इतने त्योहार ! इतना हर्षोल्लास ! उसके बावज़ूद भी हम कभी टूट-बिखर जाते हैं । निराशा ओढ़ने -बिछाने लगते हैं | हम मनुष्य हैं और कभी न कभी सब कुछ ठीक चलते हुए भी हम निराशा में डूब जाते हैं | यह सब भी होता रहता है लेकिन यदि हम उस निराशा में गहरे चले जाएं तो कभी कभी अपने से जुड़े हुए