उजाले की ओर –संस्मरण

  • 645
  • 216

स्नेहिल सुभोर प्रिय मित्रो कैसे हैं आप सब? ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना, यहॉं कल क्या हो किसने जाना? बरसों से हम यह गीत सुनते, पसंद करते और गुनगुनाते आ रहे हैं। मित्रों! कुछ भाव, चीज़ें कभी नहीं बदलती। जैसे:---- जीवन के आने के साथ जाना, उजाले के साथ अंधेरा, जीवन के साथ हर वो भाव जो ईश्वर की कृपा से हमारे भीतर हलचल मचाता है। हमें मनुष्य बनाकर इस दुनिया में भेजा है। कई बार जब हम किसी परेशानी में फँस जाते हैं या किसी ऐसी परिस्थिति में घिर जाते हैं तब हमें लगता है कि हमें धरती पर