56=== सब खाने पर बेमन से इधर-उधर की बातें करते रहे लेकिन आशी का न होना सबको खल रहा था| वैसे चिंता की कोई बात नहीं थी, बंबई जैसे शहर की सारी सड़कें उसने अकेले ही जाने कितनी बार नापी हुईं थीं| उसके अप्रत्याशित व्यवहार की ही चिंता थी सबको| आज तो वैसे भी उसके साथ ड्राइवर था| रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे| सभी थके हुए थे| अब सब बच्चे दीनानाथ के कमरे में आकर बैठे थे| “चलो, अब चेंज कर लिया जाए, बहुत देर हो गई है---”उन्होंने कहा| “अंकल ! आशी दीदी----” “अरे !---, आ जाएगी---कुछ काम