सन्यासी -- भाग - 13

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उस रात शिवनन्दन जी ने जयन्त को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जयन्त नहीं माना,जिससे सुमेर सिंह का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया,वो तो वैसे भी गुण्डागर्दी करने वाला इन्सान था,वो ऐसे धान्धलियाँ कर करके ही रुपया कमा रहा था,कहा जाएँ तो बेईमानी करना ही उसका धन्धा था, वो काँलेज में बाबू किसी की सिफारिश पर बना था ,जिसके लिए उसने अँग्रेज अफसरों के मुँह में बहुत रुपया ठूँसा था, काँलेज के बाबू की नौकरी तो वो जमाने को दिखाने के लिए करता था,उसके और भी बहुत से दो नंबर के धन्धे थे,सुनने में तो ये भी आता